सोमवार, दिसंबर 12, 2011

साधु को अंग 4


सुख देवै दुख को हरै, दूर करै अपराध।
कहै कबिर वह कब मिलै, परम सनेही साध॥

जाति न पूछो साधु की पूछि लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पङा रहन दो म्यान॥

हरि दरबारी साधु हैं, इनते सब कुछ होय।
वेगि मिलावें राम को, इन्हें मिले जु कोय॥

कह अकास को फ़ेर है, कह धरती का तोल।
कहा साधु की जाति है, कह पारस का मोल॥

हरि सों तू मति हेत करु, कर हरिजन सों हेत।
माल मुल्क हरि देत हैं, हरिजन हरि ही देत॥

साधू खोजा राम के, धसै जु महलन मांहि।
औरन को परदा लगे, इनको परदा नांहि॥

जा घर साधु न सेवहीं, पारब्रह्म पति नांहि।
ते घर मरघट सारिखा, भूत बसें ता ठांहि॥

साधुन की झुपङी भली, ना साकट को गाँव।
चंदन की कुटकी भली, ना बाबुल वनराव॥

पुर पट्टन सूबस बसै, आनन्द ठांवै ठांव।
राम सनेही बाहिरा, ऊजङ मेरे भाव॥

हयबर गयबर सघन घन, छत्रपति की नारि।
तासु पटतर ना तुलै, हरिजन की पनिहारि॥

क्यौं नृपनारी निन्दिये, पनिहारी को मान।
माँग संवारे पीव कूं, नित वह सुमरै राम॥

साधुन की कुतिया भली, बुरी साकट की माय।
वह बैठी हरिजस सुनै, निन्दा करनै जाय॥

तीरथ न्हाये एक फ़ल, साधु मिले फ़ल चार।
सदगुरू मिलें अनेक फ़ल, कहैं कबीर विचार॥

साधु सिद्ध बहु अन्तरा, साधु मता परचंड।
सिद्ध जु तारे आपको, साधु तारि नौ खंड॥

यही बङाई सन्त की, करनी देखो आय।
रज हूं ते झीना रहै, लौकीन ह्वै गुन गाय॥

परमेश्वर ते सन्त बङ, ताका कहँ उनमान।
हरि माया आगै धरै, सन्त रहै निरवान॥

नीलकंठ कीङा भखै, मुख वाके हैं राम।
औगुन वाकै नहि लगै, दरसन ही से काम॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।