शुक्रवार, दिसंबर 02, 2011

साधु को अंग


साधु को अंग

कबीर दरसन साधु के, साहिब आवै याद।
लेखे में सोई घङी, बाकी के दिन बाद॥

कबीर दरसन साधु का, करत न कीजै कानि।
ज्यौं उद्यम से लक्ष्मी, आलस से मन हानि॥

कबीर सोइ दिन भला, जा दिन साधु मिलाय।
अंक भरै भरी भेटिये, पाप सरीरा जाय॥

कबीर दरसन साधु के, बङे भाग दरसाय।
जो होवै सूली सजा, कांटै ई टरि जाय॥

दरसन कीजै साधु का, दिन में कई कई बार।
आसोजा का मेह ज्यौं, बहुत करै उपकार॥

कई बार नहि करि सकै, दोय बखत करि लेय।
कबीर साधू दरस ते, काल दगा नहि देय॥

दोय बखत नहि करि सकै, दिन में करु इक बार।
कबीर साधू दरस ते, उतरे भौजल पार॥

एक दिना नहि करि सकै, दूजै दिन करि लेह।
कबीर साधू दरस ते, पावै उत्तम देह॥

दूजै दिन नहि करि सकै, तीजै दिन करु जाय।
कबीर साधु दरस ते, मोक्ष मुक्ति फ़ल पाय॥

तीजै चौथै नहि करै, बार बार करु जाय।
यामें बिलंब न कीजिये, कहै कबीर समुझाय॥

बार बार नहि करि सकै, पाख पाख करि लेय।
कहै कबीर सो भक्त जन, जनम सुफ़ल करि लेय॥

पाख पाख नहि करि सकै, मास मास करु जाय।
यामें देर न लाइये, कहैं कबीर समुझाय॥

मास मास नहि करि सकै, छठै मास अलबत्त।
यामें ढील न कीजिये, कहैं कबीर अविगत्त॥

छठै मास नहि करि सकै, बरस दिना करि लेय।
कहै कबीर सो भक्तजन, जमहि चुनौती देय॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।