निराकार
निजरूप है, प्रेम प्रीत सों सेव।
जो
चाहै आकार को, साधू परतछ देव॥
साधू
आवत देखि के, चरनौं लागौ धाय।
क्या
जानौ इस भेष में, हरि आपै मिल जाय॥
साधू
आवत देख करि, हँसी हमारी देह।
माथा
का ग्रह उतरा, नैनन बढ़ा सनेह॥
साधू
आवत देखि के, मन में करै मरोर।
सो तो
होसी चूहरा, बसै गांव की ओर॥
साधु
आया पाहुना, माँगै चार रतन।
घुनी
पानी साथरा, सरधा सेती अंन॥
साधु
दया साहिब मिले, उपजा परमानंद।
कोटि
विघन पल में टलै, मिटै सकल दुख दंद॥
साधू
सब्द समुद्र है, जामें रतन भराय।
मंद
भाग मुठ्ठी भरे, कंकर हाथ लगाय॥
साधु
मिलै यह सब टलै, काल जाल जम चोट।
सीस
नवावत ढहि पङै, अघ पापन के पोट॥
साधु
सेव जा घर नहि, सदगुरू पूजा नाहि।
सो घर
मरघट जानिये, भूत बसै तेहि मांहि॥
साधु
सीप साहिब समुंद, निपजत मोती मांहि।
वस्तु
ठिकानै पाइये, नाल खाल में नांहि॥
साधु
बङे संसार में, हरि ते अधिका सोय।
बिन
इच्छा पूरन करै, साहिब हरि नहि दोय॥
साधु
बिरछ सतनाम फ़ल, सीतल सब्द विचार।
जग में
होते साधु नहि, जरि मरता संसार॥
साधु
हमारी आतमा, हम साधुन की देह।
साधुन
में हम यौं रहैं, ज्यौं बादल में मेह॥
साधु
हमारी आतमा, हम साधुन की सांस।
साधुन
में हम यौं रहै, ज्यौं फ़ूलन में बास॥
साधु
हमारी आतमा, हम साधुन के जीव।
साधुन
में हम यौं रहैं, ज्यौं पय मध्ये घीव॥
ज्यौं
पय मद्धे घीव है, रमी रहा सब ठौर।
वक्ता
स्रोता बहु मिले, मथि काढ़ै ते और॥
साधु
नदी जल प्रेम रस, तहाँ प्रछालो अंग।
कहैं
कबिर निरमल भया, हरि भक्तन के संग॥
साधु
मिले साहिब मिले, अन्तर रही न रेख।
मनसा
वाचा करमना, साधू साहिब एक॥
साधू
को उठि भेटिये, मुख ते कहिये राम।
नातो
साधु सरूप को, करनी सो नहि काम॥
साधुन
के मैं संग हूं, अन्त कहूं नहि जाँव।
जु
मोहि अरपै प्रीति सो, साधुन मुख ह्वै खाँव॥
साधू
भूखा भाव का, धन का भूखा नांहि।
धन का
भूखा जो फ़िरै, सो तो साधु नांहि॥
साधु
बङे परमारथी, घन ज्यौं बरसै आय।
तपन
बुझावै और की, अपनो पारस लाय॥
साधु
बङे परमारथी, सीतल जिनके अंग।
तपन
बुझावै और की, दे दे अपनो रंग॥
आवत
साधु न हरषिया, जात न दीया रोय।
कहैं
कबिर वा दास की, मुक्ति कहाँ ते होय॥
छाजन
भोजन प्रीति सों, दीजै साधु बुलाय।
जीवत
जस है जगत में, अन्त परम पद पाय॥
सरवर
तरुवर संतजन, चौथा बरसै मेह।
परमारथ
के कारनै, चारौं धारी देह॥
बिरछा
कबहु न फ़ल भखै, नदी न अँचवै नीर।
परमारथ
के कारनै, साधुन धरा सरीर॥
अलख
पुरुष की आरसी, साधु ही की देह।
लखा जु
चाहै अलख को, इनही में लखि लेह॥
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