साधु
कहावन कठिन है, लम्बी पेङ खजूर।
चढ़ूं
तो चाखै प्रेमरस, गिरूं तो चकनाचूर॥
साधु
चाल जु चालई, साधु कहावै सोय।
बिन
साधन तो सुधि नही, साधु कहाँ ते होय॥
साधू
सोई जानिये, चलै साधु की चाल।
परमारथ
राता रहै, बोले वचन रसाल॥
साधु
सती औ सूरमा, दई न मोङै मूंह।
ये
तीनों भागा बुरा, साहिब जाकी सूंह॥
साधु
सती औ सूरमा, राखा रहै न ओट।
माथा
बांधि पताक सों, नेजा घालैं चोट॥
साधु
सती औ सिंघ को, ज्यौं लंघन त्यौं सोभ।
सिंघ न
मारै मेंढका, साधु न बांधे लोभ॥
साधु
सिंघ का इक मता, जीवत ही को खाय।
भावहीन
मिरतक दसा, ताके निकट न जाय।
साधु
साधु सब एक है, जस अफ़ीम का खेत।
कोई
विवेकी लाल हैं, और सेत का सेत॥
साधू
तो हीरा भया, ना फ़ूटै घन खाय।
ना वह
बिनसै कुंभ ज्यौं, ना वह आवै जाय॥
साधु
साधु सबही बङे, अपनी अपनी ठौर।
सब्द
विवेकी पारखी, ते माथे की मौर॥
साधू
ऐसा चाहिये, जाके ज्ञान विवेक।
बाहर
मिलते सों मिलै, अन्तर सब सों एक॥
सदकृपाल
दुख परिहरन, वैर भाव नहि दोय।
छिमा
ज्ञान सत भाखही, हिंसा रहित जु होय॥
दुख
सुख एक समान है, हरष सोक नहि व्याप।
उपकारी
निहकामता, उपजै छोह न ताप॥
सदा
रहै सन्तोष में, धरम आप दृढ़ धार।
आस एक
गुरूदेव की, और न चित्त विचार॥
सावधान
औ सीलता, सदा प्रफ़ुल्लित गात।
निर्विकार
गंभीर मत, धीरज दया बसात॥
निर्वैरी
निहकामता, स्वामी सती नेह।
विषया
सों न्यारा रहै, साधुन का मत येह॥
मान
अमान न चित्त धरै, औरन को सनमान।
जो कोई
आसा करै, उपदेसै तेहि ज्ञान॥
सीलवंत
दृढ़ ज्ञान मत, अति उदार चित होय।
लज्जावान
अति निछलता, कोमल हिरदा सोय॥
दयावंत
धरमक ध्वजा, धीरजवान प्रमान।
सन्तोषी
सुखदायका, साधु परम सुजान॥
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