सोमवार, दिसंबर 12, 2011

साधु को अंग 10


सोई साधु पति बरत जु, सदा जरै पिय आग।
लाभ हानि बिसराय के, रहु गुरू चरनन लाग॥

दया गरीबी बंदगी, समता सील सुभाव।
येते लच्छन साधु के, कहै कबीर सदभाव॥

मान नहि अपमान नहीं, ऐसे सीतल संत।
भवसागर ऊतर पङे, तोरै जम के दंत॥

आसा तजि माया तजै, मोह तजै अरु मान।
हरख सोक निन्दा तजै, कहै कबिर संत जान॥

साधु सोई सराहिये, कनक कामिनी त्याग।
और कछू इच्छा नहीं, निसदिन रह अनुराग॥

साधू ऐसा चाहिये, जैसा फ़ोफ़ल भग।
आप करावै टूकङा, पर राखै रंग॥

तनहि ताप जिनको नही, माया मोह संताप।
हरख सोक आसा नहीं, सो हरिजन हरि आप॥

संतन के मन भय रहे, भय धरि करै विचार।
निसदिन नाम जपउ करै, बिसरत नहीं लगार॥

आसन तो इकान्त करै, कामिनी संगत दूर।
सीतल संत सिरोमनी, उनका ऐसा नूर॥

साधु साधु मुख से कहै, पाप भसम ह्वै जाय।
आप कबीर गुरू कहत हैं, साधू सदा सहाय॥

हौं साधुन के संग रहूं, अंत न कितहूं जाऊं।
जु मोहि अरपै प्रीति सों, साधुन मुख ह्वै खाऊं॥

यह कलियुग आयो अवै, साधु न मानै कोय।
कामी क्रोधी मसखरा, तिनकी पूजा होय॥

संत संत सब कोइ कहै, संत समुंदर पार।
अनल पंख कोइ एक है, पंखी कोटि हजार॥

कबीर सेवा दोउ भली, एक संत इक राम।
राम है दाता मुक्ति का, संत जपावै नाम॥

साधू खारा यौं तजै, सीप समुंदर मांहि।
वासो तो वामें रहै, मन चित वासों नाहिं॥

साधु मिले साहिब मिले, ये सुख कहो न जाय।
अंतरगत अंगीठडी, ततचिन टाढी थाय॥

साहिब संग राचै भंवर, कबहू न छूटै रंग।
जैसे जैसे कीजिये, उन संतन को संग॥

साधू के घर जाय के, किरतन दीजै कान।
ज्यौं उद्यम त्यौं लाभ है, ज्यौं आलस त्यौं हानि॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।