अन
वैस्नव कोई नहीं, सब ही वैस्नव जानि।
जेता
हरि को ना भजै, तेता ताको हानि॥
आप
साधु करि देखिये, देख असाधु न कोय।
जाके
हिरदे हरि नही, हानी उसकी होय॥
जा सुख
को मुनिवर रटैं, सुर नर करैं विलाप।
सो सुख
सहजै पाइया, सन्तों संगति आप॥
मेरा
मन पंछी भया, उङि के चढ़ा अकास।
बैकुंठहि
खाली पङा, साहिब सन्तों पास॥
परवत
परवत मैं फ़िरा, कारन अपने राम।
राम
सरीखे जन मिले, तिन सारै सब काम॥
कबीर
सीतल जल नहि, हिम न सीतल होय।
कबीर
सीतल संतजन, नाम सनेही होय॥
भली भई
हरिजन मिले, कहने आयो राम।
सुरति
दसौं दिस जाय थी, अपने अपने काम॥
संत
मिले जनि बीछुरौ, बिछुरौ यह मम प्रान।
सब्द
सनेही ना मिले, प्रान देह में आन॥
कोटि
कोटि तीरथ करै, कोटि कोटि करु धाम।
जब लग
साधु न सेवई, तब लग काचा काम॥
आसा
वासा सन्त का, ब्रह्मा लखै न वेद।
षट
दरसन खटपट करैं, बिरला पावै भेद॥
वेद
थके ब्रह्मा थके, थाके सेस महेस।
गीता
हूं की गम नही, संत किया परवेस॥
धन सो
माता सुन्दरी, जाया साधू पूत।
नाम
सुमिरि निर्भय भया, अरु सब गया अबूत॥
साधू
ऐसा चाहिये, दुखै दुखावै नांहि।
पान
फ़ूल छैङै नहीं, बसै बगीचा मांहि॥
साधू
जन सब में रमें, दुख न काहू देहि।
अपने
मत गाढ़ा रहै, साधन का मत येहि॥
साध
हजारी कापङा, तामें मल न समाय।
साकट
काली कामली, भावै तहाँ बिछाय॥
साधु
भौंरा जग कली, निस दिन फ़िरै उदास॥
टुकि
टुकि तहाँ बिलंबिया, सीतल सब्द निवास॥
साधु
सिद्ध बङ अन्तरा, जैसे आम बबूल।
बाकी
डारी अमी फ़ल, बाकी डारी सूल॥
साधु
कहावन कठिन है, ज्यौं खांडे की धार।
डगमगाय
तो गिरि पङे, निहचल उतरे पार॥
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