शुक्रवार, दिसंबर 02, 2011

निगुरा को अंग 4


ऊजङ घर में बैठि के, किसका लीजै नाम।
साकट के संग बैठि के, क्यूं कर पावै राम॥

साकट साकट कहा करो, फ़िट साकट को नाम।
ताही सें सुअर भला, चोखा राखै गाम॥

हरिजन की लातां भलीं, बुरि साकट की बात।
लातों में सुख ऊपजे, बातें इज्जत जात॥

साकट भलेहि सरजिया, परनिंदा जु करंत।
पर को पार उतार के, आपहि नरक परंत॥

वैस्नव भया तो क्या भया, साकट के घर खाय।
वैस्नव साकट दोऊ मिलि, नरक कुंड में जाय॥

सूने मंदिर पैठता, नही धनी की लाज।
कूकर कीने फ़िरत हैं, क्यौं करि सरिगो काज॥

पारब्रह्म बूङो मोतिया, झङी बांधि शिखर।
सुगरा सुगरा चुनि लिया, चूक पङी निगुर॥

बेकामी को सिरजि निवावै, सांटि खोवै भालि गंवावै।
दास कबीर ताहि को भावै, रारि समै सनमुख सरसावैं॥

हरिजन आवत देखि के, मोहङो सूख गयो।
भाव भक्ति समुझयो नहीं, मूरख चूक गयो॥

दासी केरा पूत जो, पिता कौन से कहै।
गुरू बिन नर भरमत फ़िरै, मुक्ति कहाँ से लहै॥

निगुरा ब्राह्मन नहि भला, गुरूमुख भला चमार।
देवतन से कुत्ता भला, नित उठ भूंके द्वार॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।