ऊजङ घर
में बैठि के, किसका लीजै नाम।
साकट
के संग बैठि के, क्यूं कर पावै राम॥
साकट
साकट कहा करो, फ़िट साकट को नाम।
ताही
सें सुअर भला, चोखा राखै गाम॥
हरिजन
की लातां भलीं, बुरि साकट की बात।
लातों
में सुख ऊपजे, बातें इज्जत जात॥
साकट
भलेहि सरजिया, परनिंदा जु करंत।
पर को
पार उतार के, आपहि नरक परंत॥
वैस्नव
भया तो क्या भया, साकट के घर खाय।
वैस्नव
साकट दोऊ मिलि, नरक कुंड में जाय॥
सूने
मंदिर पैठता, नही धनी की लाज।
कूकर
कीने फ़िरत हैं, क्यौं करि सरिगो काज॥
पारब्रह्म
बूङो मोतिया, झङी बांधि शिखर।
सुगरा
सुगरा चुनि लिया, चूक पङी निगुर॥
बेकामी
को सिरजि निवावै, सांटि खोवै भालि गंवावै।
दास
कबीर ताहि को भावै, रारि समै सनमुख सरसावैं॥
हरिजन
आवत देखि के, मोहङो सूख गयो।
भाव
भक्ति समुझयो नहीं, मूरख चूक गयो॥
दासी
केरा पूत जो, पिता कौन से कहै।
गुरू
बिन नर भरमत फ़िरै, मुक्ति कहाँ से लहै॥
निगुरा
ब्राह्मन नहि भला, गुरूमुख भला चमार।
देवतन
से कुत्ता भला, नित उठ भूंके द्वार॥
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