सोमवार, दिसंबर 12, 2011

साधु को अंग 7



निहचल मत अरु दृढ़ मता, ये सब लच्छन जान।
साधू सोई जगत में, जो यह लच्छनवान॥ 

मन रंजन पर दुखहरन, वैर भाव बिसराय।
छिपा ज्ञान हिंसा रहित, सो नर साधु कहाय॥

इन्द्रिय मन निग्रह करन, हिरदा कोमल होय।
सदा शुद्ध आचार में, रह विचार में सोय॥

और देव नहि चित बसै, मन गुरूचरन बसाय।
स्वल्पाहार भोजन करु, तृस्ना दूर पराय॥

और देव नहि चित बसै, बिन प्रतीत भगवान।
मिला (अ)हार भोजन करै, तृस्ना चलै न जान॥

षङ विकार यह देह के, तिनको चित्त न लाय।
सोक मोह प्यासहि छुधा, जरा मृत्यु नसि जाय॥

कपट कुटिलता छांङि के, सबसों मित्रहि भाव।
कृणवान सम ज्ञानवत, वैर भाव नहि काव॥

कपट कुटिलता दुरवचन, त्यागी सबसों हेत।
कृपाबन्त आसारहित, गुरूभक्ति सिख देत॥

रवि को तेज घटै नहीं, जो घन जुरै घमंड।
साधु वचन पलटै नहीं, पलटि जाय ब्रह्मंड॥

जौन चाल संसार की, तौन साधु की नांहि।
डिंभ चाल करनी करै, साधु कहो मति ताहि॥

गांठी दाम न बांधई, नहि नारी सों नेह।
कहैं कबीर ता साधु की, हम चरनन की खेह॥

कोई आवै भाव ले, को अभाव ले आव।
साधु दोऊ को पोषते, भाव न गिनै अभाव॥

रक्त छांङि पय को गहै, ज्यौं रे गउ का बच्छ।
औगुन छाङै गुन गहै, ऐसा साधु लच्छ॥

संत न छाङै संतता, कोटिक मिले असन्त।
मलय भुवंगम बेधिया, सीतलता न तजन्त॥

साकट ब्राह्मन मति मिलो, साधु मिलो चंडाल।
जाहि मिलै सुख ऊपजै, मानो मिले दयाल॥

कमल पत्र है साधुजन, बसै जगत के मांहि।
बालक केरी धाय ज्यौं, अपना जानत नांहि॥

हरि दरिया सूभर भरा, साधू का घट सीप।
तामें मोती नीपजै, चढ़ै देसावर दीप॥

बहता पानी निरमला, बंधा गन्दा होय।
साधू जन रमता भला, दाग न लागे कोय॥

बंधा पानी निरमला, जो टुक गहिरा होय।
साधूजन बैठा भला, जो कछु साधन होय॥

ढोल दमामा गङगङी, सहनाई औ तूर।
तीनों निकसि न बाहुरै, साधु सती औ सूर।

तूटै बरत अकास सों, कौन सकत है झेल।
साधु सती औ सूर का, अनी उपर का खेल॥

हांसी खेल हराम है, जो जन राते नाम।

माया मंदिर इस्तरी, नहि साधु का काम॥

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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।