सोमवार, दिसंबर 12, 2011

साधु को अंग 9


सन्त समागम परम सुख, जान अलप सुख और।
मान सरोवर हंस है, बगुला ठौरै ठौर॥

संत मिले सुख ऊपजे, दुष्ट मिले दुख होय।
सेवा कीजै संत की, जनम कृतारथ होय॥

हरिजन मिले तो हरि मिले, मन पाया विश्वास।
हरिजन हरि का रूप है, ज्यूं फ़ूलन में वास॥

संत मिले तब हरि मिले, कहिये आदि रु अन्त।
जो संतन को परिहरै, सदा तजै भगवंत॥

राम मिलन के कारनै, मो मन बङा उदास।
संत संग में सोधि ले, राम उनों के पास॥

सरनै राखौ साइयां, पूरो मन की आस।
और न मेरे चाहिये, संत मिलन की प्यास॥

कलियुग एकै नाम है, दूजा रूप है संत।
सांचे मन से सेइये, मेटै करम अनंत॥

संत जहाँ सुमरन सदा, आठों पहर अमूल।
भरि भरि पीवै रामरस, प्रेम पियाला फ़ूल॥

फ़ूटा मन बदलाय दे, साधू बङे सुनार।
तूटी होवै राम सों, फ़ेर संधावन हार॥

राज दुवार न जाइये, कोटिक मिले जु हेम।
सुपच भगत के जाइये, यह विस्नू का नेम॥

संगत कीजै साधु की, कदी न निस्फ़ल होय।
लोहा पारस परस ते, सो भी कंचन होय॥

सो दिन गया अकाज में, संगत भई न संत।
प्रेम बिना पशु जीवना, भाव बिना भटकंत॥

संत मिले तब हरि मिले, यूं सुख मिलै न कोय।
दरसन ते दुरमत कटै, मन अति निरमल होय॥

साहिब मिला तब जानिये, दरसन पाये साध।
मनसा वाचा करमना, मिटे सकल अपराध॥


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Agra, uttar pradesh, India
भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद जिले में जसराना तहसील के एक गांव नगला भादौं में श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस का ‘चिन्ताहरण मुक्तमंडल आश्रम’ के नाम से आश्रम है। जहाँ लगभग गत दस वर्षों से सहज योग का शीघ्र प्रभावी और अनुभूतिदायक ‘सुरति शब्द योग’ हँसदीक्षा के उपरान्त कराया, सिखाया जाता है। परिपक्व साधकों को सारशब्द और निःअक्षर ज्ञान का भी अभ्यास कराया जाता है, और विधिवत दीक्षा दी जाती है। यदि कोई साधक इस क्षेत्र में उन्नति का इच्छुक है, तो वह आश्रम पर सम्पर्क कर सकता है।